लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा ।
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Saturday, March 28, 2015
ग़मों के दौर
ग़मों के दौर से गुज़रें है
तेरा दर है इन दीवारों से
बन के आएगी सदा मेरी
इन ऊची-नीची मीनारों से
शामो सहर जब न रहे होगे
कहीं तो नूर -ए खुदा रहे होगे
हम यू ही संग क्यों हुए जाते है
अपने में कहीं दफ़न हुए जाते है
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