Saturday, October 17, 2015

बिहार किस प्रतीक्षा में?


बिहार   किस प्रतीक्षा में?


अराजकता के जिस दौर में चाण्क्य का जन्म हुआ था ,उसी दौर को आज बिहार जी रहा है , पर आज बिहार में कोई चाणक्य नहीं है जो उसे अराजकता के दौर से निकल कर समृद्धि  की राह दिखाए , लालू जी के राज के दौरान बिहार के लोग देख चुके है की वो कौन सी कैसी प्रताड़ना झेल चुके है।  आज भी जोड़ -तोड़ की राजनीति में नितीश जी कौन से लोभ में लालू जी के साथ मिल कर किस आशा की बात कर रहे है।
हेमा -मालिनी के गालों जैसी सड़क बना कर क्या गरीब का पेट भर रहे है या दहेज़ -प्रथा, को समाप्त कर रहे है , आज भी बिहार में लड़की का पिता भर पेट भोजन नहीं कर पा रहा है। आज भी नक्क्सवाद का बोल -बाला है , नक्क्स्ल  माओवाद आने का अर्थ ही है , समाज बदलाव चाहता है , क्योकि आज बिहार का किसान भूखा और राज नेताओ के घर भरे हुए है , समाज दो धारी तलवार पर चल रहा है , बेहतर है उलटे - सीधे  मुद्दो पर काम करने की बजाए , एक मत हो कर सोचे।
सीधी- बात है भ्रष्टाचार का अंत ही नहीं हो रहा है, एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा कर हर कोई आगे बढ़ जाना चाहता है। जब गरीब के पेट की ना सोच कर अपने स्वार्थ की बात करते है ,तब आतंकवाद, नक्क्स्लवाद जैसी सामाजिक बीमारी अपने आप दीमक की तरह देश की हड्डियों को गला देती है.। राहुल भावी प्रधान मंत्री बनना चाहते है , l
सारे विश्व को राजनीति का ज्ञान देने वाले चाणक्य की जन्म भूमि आज रो रही है।  क्या आज राहुल गांधी ,चाणक्य बनने जा रहे है , आज के महायुद्ध के  रण में जौहर दिखने वाले लोग ही कुछ कर सकते है, राम विलास पासवान , लालू जी जो स्वयं भ्रष्टाचार के प्रतीक है क्या , बिहार के बदहाल होते लोगो के बारे में कुछ सोचेगे, जो स्वयं नहीं जानते क्या करना है , क्या कर पायेगे जीवन में , सामजिक ज़िम्मेदारियों से भाग रहे है नितीश जी , पता नहीं कौन सा गठबंधन किया जा रहा है बिहार के एक तरफा विकास के लिए।
राहुल गांधी , जो अपने देश से ही अवगत नहीं , जिन्हे देश नहीं देश की राज गद्दी से प्रेम है, वो क्या करेंगे , जो यह नहीं पहचान पा रहे की बिहार में किसान और लेखक दोनों भूख , बदहाली , में
जीवन बिता रहे है। जिन में बौद्धिक स्तर शून्य हो वह दूसरों का बौद्धिक स्तर क्या बतायेगे, केवल राजनैतिक सुखो के लिए राहुल गांधी जी , राम विलास पासवान जी , लालू जी , नितीश जी , देश के हित को न देख कर कौन सा हित साध रहे है।
कामयाबी के लिए जो चल पड़े
जिन के चेहरों में सदा ही बल पड़े
भूख , न देख कर  स्वार्थ पर अड़े
रस्ते की धुप जो ना सह कर खड़े
कौन सा नव -दीप जलना चाहते है
कामयाबी के शिखर पे जाना चाहते है

राजनीति के लिए समाज केवल एक प्रयोगशाला है।बिहार आज समाज के हाशिये पर खड़ा है, कही बिहार भी आतंक वाद के चपेट में न आ जाये

आराधना राय "अरु"