Friday, March 27, 2015

नीड़ का निर्माण फिर फिर।






१९४७  एक  दौर कि शुरुआत थीऔर एक दौर का अंत जब देश ईष्या , नफ़रत कि वजह से दो टुकड़े हो गया था।
एक कि बर्बादी दूसरे का सुख लगने लगे, यही वक़्त  होता है जब  हौसलों का और उम्मीदो का भी दामन थमा जाता  है । देश तो दोनों एक ही थे , जब अलग हुए , उनके मसले भी एक ही थे ,उनकी बातें भी एक सी थी , पर दिलों  में खाइया आज भी है ,वक़्त ने नासूर दोनों तरफ नहीं भरे,कारण सिर्फ इतना है कि आज तक दोनों मुल्कों नेएक दूसरे कि बात समझी ही नहीं ,समझौते कितने भी हो जाये, उन समझौतों पर चलने के लिए ज़रूरी है ,विश्वास का होना ,ऐसे में विश्वास दोनों तरफ ख़तम हो जाए, कोई संधि नहीं हो सकती।
                                   
                                     '' सफर था दश्त का मगर
                                       चले तो ख्वाब ले के चले ''

हम आज़ादी का परचम लहराते रहे और देश टुकड़ों में बाँटता चला गया ,प्यार ज़रा- ज़रा सी बातों में नफ़रत
बनता गया। १९४७ के हालत और १९८० के दशक के हालत अलग नहीं थे। बहुत आसान होता है दुर्भावना के
साथ किसी समाज को नीचा दिखना , बैर पाल कर किसी के साथ धोखा कर जाना आसान है।   महल जब खंडहर हो जाते  है, तब एक उज़ड़ा म्यार रह जाते है। शर्तो पर ज़िंदगी चलती है ना दोस्ती ना प्यार जो शर्तों
पर चले वो व्यापार कहलाता है।आज पाकिस्तान एक अलग मुल्क है , उसे आज हम अलग देश कि तरह से देखे तो ही अच्छा है।
                           
                             '' हिन्दू मुसलमान , ईसाई , सिख से लहलहाता है हिंदुस्तान,
                                मज़हबी आलम से ऊपर भी कोई तेरा जहां अब कहीं होगा।''

दंगाई दंगा कर नफ़रत ही फैलायेंगे , प्रेम कि भाषा केवल उन्हें सिखाई नहीं जा सकती ,विवेकानंद के अनुसार
दुश्मन को हमेशा ऊँचा दर्ज़ा देना चाहिए इसलिए १९४७ हो या ८० के दशक में होने वाले गदर आज तक भुलाए
नहीं जा सके।

जंग लगी बेड़ियों का फिर ये हार
क्यों
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क्षुब्ध संचित जीवन पर अब ये  प्रहार
क्यों
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भ्रमित हो चुके गान सारे नव प्रयाण
क्यों
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भोर कि इस लालिमा पर अश्रु धार
क्यों
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 रंग विहीन जीवन पर अब ये श्रृंगार
क्यों
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नीड़ का तेरे मेरे अब  फिर निर्माण
क्यों
हिंदुस्तान पहले भी टुकडों में बंटा हुआ था , चाणक्ये ने जब सिकंदर के हमलों से पहले पूरे भू -भाग को एक
करने कि ठानी थी। तब हम जनपदों में बंटे हुए थे, और उस हार का कारण था , पूरे भू -भाग  का अलग -थलग
हो कर रहना था।  वीर वही जो हार कर भी हार ना मानने   वालों से ना रुके। चाण्क्य सामान गुरु ही चन्द्र गुप्त मौर्य जैसे शिष्यों को जन्म दे पाते है और वही आधारशिला रखते है नालंदा जैसे विश्व विधालयों  की।

                                    "पीड़ से जन्म हुआ होगा
                                      तब  ही सृजन हुआ होगा ''

नव युग तब ही आता है जब हौसलों के गीत गाये जा सकते है , वक़्त बदला समय के साथ हिंदुस्तान बढ़ा और
नए धर्मों ने हिंदुस्तान सजान शुरू किया  जैसे थके हारे प्राणियों को घने वृक्ष कि छाया मिल गई।

                                        ''ज़मी है और आसमा है
                                         नए कायदो का जहां है। ''

200 साल से ज़्यादा हम लड़े अपनी स्वधीनता के लिए आत्म सम्मान के लिए पर हमने बदले में पाया बंटा हुआ हिंदुस्तान ,१९४७ के दंगो पीड़ तभी समझ आएगी जब १०८० के विद्रोह को भी सम्मान मिलेगा।
आज के परिपेक्ष में समझना ज़रूरी है कि कोई भी गीत किसी के दर्द को समझे बगैर पूरा नहीं होता ना कभी होगा। ये देश उज़ड़ा और बना यू ही सौ बार , पर इस बनने बिगड़ने में अगर अपनी इज़्ज़त और आबरु सम्हाल
ना पाई और अपने दुख में कैद रही वो औरत ही थी। ये बात और थी कि उसे समझ कोई ना पाया।

दुख से कातर तो हुई थी मगर निर्बल नहीं थी, माता सुंदरी , जीजा बाई , रानी लक्ष्मी बाई ,  से लेकर एनी बेसेंट
कित्तूर कि रानी चेनम्मा , चाँद बीबी , जैसी स्त्रियों ने ये जहान बदला।
अपवादों के बाद भी विडम्बना यही है कि चीर -हरण केवल औरतों का होता रहा और मान पुरुषों का गया।

                           महके किसी दामन में गुलों -बू - कि तरह
                           आगाज़ यही है  चमन के बसे  रहने का।

"गम -ए -दिल, तू भी यही है, मेरा मरकस भी यही है , इसी तरह हर बार बिगड़ कर तकदीर ये बनती है,
अगली बार ब्लॉक में स्त्री -पुरुष के सापेक्ष  कुछ और कड़िया। 


































@कॉपी राइट आराधना

1994 मेँ हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत , मेरी सहेली नामक मैगज़ीन  मे कहानियाँ लिखी  नाटक   और कुछ रेडिओ प्रोग्रम्मेस  की स्क्रिप्ट लिखने के एक़ अन्तराल बाद दुबारा से हिंदी लेखन करने का दुःसाहस  कर रही हू ।
I write my English short story blog in http://aradhanakissekahniyan.blogspot.in/and I write
Hindi story as tulika and urdu nazm in devanagari script as ana




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