Tuesday, August 4, 2015

ज़िन्दगी कह गई




मुझ से कहती है ये ज़िंदगी धीरे चलों
वक़्त के मोड़ पर तुम भी ज़रा तो रुको

सच कि बातें ,रुसवाइयों कि कहानियाँ
संग हो चुके दिलों कि कहानियाँ लिखों

मौत और ज़िन्दगी कि ज़ंग ज़ारी अभी
हँस कर  परिंदों कि मांनिंद उड़न ये भरो

रो कर बहुत काटी ये बेचैन सी ज़िन्दगी
"अरु"अब कुछ उम्मीदों कि बारिश करो
आराधना राय



4 comments:

  1. Zindagi aur Maut, Parmatma aur Aatma , hanssi aur khushi sub kareeb hain ik-duje ke. Shardha aur Vishwas ke sath chalte chalo

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-09-2015) को "मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं-मैं शिक्षक हूँ " (चर्चा अंक-2090) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete